जिन बुजुर्गों ने १९९० के दशक में अमेरिका द्वारा भारत पर थोपे गए वैश्वीकरण को देखा है, उनके लिए यह अजीब बात है कि उसी बाहुबलीने अब अपने उद्योगों की रक्षा के लिए टैरिफ बढ़ा दिए हैं। एक बाहुबलीने कभी भी गुंडई ही करेगा, है ना? लेकिन क्या दुनिया अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ कम करने को तैयार होगा?
दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता होना महंगा है। आपको सर्वोत्तम उत्पाद, सर्वोत्तम सुविधाएं, ‘ग्राहक ही राजा है’ का सम्मान मिलता है, लेकिन भारतीय कंपनियां कितनी दूर तक जा सकती हैं?
जब एक देश A के लिए उच्च टैरिफ और दूसरे देश B के लिए कम आयात शुल्क होते हैं, तो देश B के उत्पाद कीमत में लाभप्रद होते हैं। इसलिए, A में उत्पादक अपनी कीमतें कम करने के लिए मजबूर हैं। उनका मार्जिन कम हो जायेगा। इसके अलावा, B को एक नई आपूर्ति श्रृंखला विकसित करनी होगी। यह खेल तब तक जारी रहेगा, जब तक A आधारित कंपनियां अपने मार्जिन को कम करने के लिए तैयार हैं। कोई भी हानि बर्दाश्त नहीं करेगा, इसलिए इसकी भी एक सीमा होनी चाहिए।
दूसरी ओर, अमरीकी उपभोक्ता अपनी प्राथमिकताएं बदलने के लिए उत्सुक नहीं हैं। उनका उत्पाद से गहरा जुड़ाव है, लेकिन अब अमेरिकी उपभोक्ताओं को उच्च आयात शुल्क के कारण अधिक भुगतान करना होगा। जब तक वे इसे खरीद सकेंगे, वे इसे खरीदते रहेंगे। फिर एक सीमा होगी। इसके तात्कालिक परिणाम होंगे।
“जैसे तो वैसा” स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। कनाडा, मैक्सिको और अब चीन ने भी अमेरिकी कदमों का जवाब अपने टैरिफ लगाकर दिया है। इससे वैश्विक बाजार में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। भ्रम का मतलब है परिवर्तन। क्या भारत को पहले से चल रही ‘चीन + 1’ नीति से लाभ होगा? मेरी राय में, हाँ।
अमेरिका में मंदी से भारत भी अछूता नहीं है। एक पुरानी कहावत है ‘जब अमेरिका छींकता है, तो बाकी दुनिया बीमार हो जाती है।’ यह आज भी सत्य है। अमेरिका उपभोग में अग्रणी है, लेकिन भारत में हर चीज वैश्विक बाजार से जुड़ी नहीं है।
हमारा देश दुनिया में भी एक प्रमुख उपभोक्ता बन रहा है। अगले २५ वर्षों में दुनिया की क्रियाशील जनसंख्या में भारतीयों की हिस्सेदारी २५ प्रतिशत होगी। हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में सबसे युवा है। अनिश्चितता के कारण आपको कुछ छोटी-मोटी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। इससे बाजार में गिरावट आएगी और निवेश सस्ता हो जाएगा।
यह समय अच्छे निवेशकों के लिए उत्सव का समय है। जब अन्य लोग डरे हुए हों, तो खरीदें। मुझे लगता है कि बाजार बहुत से लोगों को डराने लगा है।
इस स्थिति का अंत कब होगा? कोई नहीं कह सकता। धन कमाना आसान नहीं है। इसके लिए आपको भविष्य पर विश्वास रखना होगा। जितना अधिक आप यह मानेंगे कि भारत का भविष्य आज की तुलना में अधिक उज्ज्वल है, उतना ही अधिक आप ट्रम्प द्वारा भेजे गए इस अवसर का लाभ उठा सकेंगे। यह अवसर अकल्पनीय था। धनवान बनने के लिए इसका उपयोग करें। वर्ष २०२५ और २०२६ निवेश की दृष्टि से आक्रामक होने वाले हैं।
मेरी राय में निम्नलिखित बातें सकारात्मक हैं :
- भारतीय बैंकिंग क्षेत्र सर्वोत्तम वित्तीय स्थिति में है और कॉर्पोरेट ऋण न्यूनतम स्तर पर है।
- सरकारी कर संग्रह और व्यय बढ़ रहे हैं।
- चूंकि ५ लाख रुपये तक की आय पर कर छूट प्रदान की जा रही है। १२ लाख रुपये तक की आय होने पर मध्यम आय वर्ग में खरीदारी बढ़ेगी।
- ब्याज दरों में गिरावट आने की संभावना है, जिससे कम्पनियों और आम उपभोक्ताओं के लिए उधार लेना और निवेश करना आसान हो जाएगा।
- सरकार टैरिफ पर अमेरिका के आक्रामक रुख पर सतर्कतापूर्वक प्रतिक्रिया दे रही है। अमेरिका के पुराने मित्र कनाडा, जापान, इजरायल भी ट्रम्प के टैरिफ का सामना कर रहे हैं। इसमें भारत अकेला नहीं है।
- तेल की कीमतों में गिरावट आने की संभावना है। चूंकि भारत तेल आयातक और बड़ा उपभोक्ता है, इसलिए उसे इससे लाभ होगा।
- भारत में मुद्रास्फीति नियंत्रण में है।
- भारतीय बाजार पहले से ही अमेरिका की तुलना में पिछड़ रहे हैं। एफआईआई की भारी मात्रा में बिकवाली हुई है। उनकी होल्डिंग्स कई वर्षों के निम्नतम स्तर पर हैं।
यह दीर्घकालिक निवेशकों के लिए ऐसी उथल-पुथल से लाभ कमाने का समय है। लंबी अवधि में भारतीय बाजार में गिरावट की संभावना नहीं है। क्या आप इस संकट से धनवान बन सकते हैं?
– स्नेहदीप फुलझेले
(लेखक मुंबई स्थित म्युच्युअल फंड डिस्ट्रीब्यूटर है। )
संपर्क : ९८१९३ ९११२२